- प्रशांत पोळ
आज १४ अप्रैल. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी की जयंती. अनेक राज्यों में चुनाव का माहौल हैं. कांग्रेस के नेता आज डॉ. आंबेडकर जी की प्रतिमा पर माला डालने अवश्य आएंगे. उन्हें रोकिये. उनका कोई अधिकार नहीं हैं बाबासाहब जी की प्रतिमा पर माल्यापर्ण करने का.. जिस कांग्रेस ने जीते जी आंबेडकर जी को जलील किया, उनकी उपेक्षा की और उनके मृत्यु के ६७ वर्ष के बाद भी जो संविधान की धारा बदलने के नाम पर उनका अपमान कर रहे हैं, वो किस अधिकार से आंबेडकर जी को के नाम से वोट मांग सकते हैं?
स्वतंत्रता मिलने से पहले, और मिलने के बाद भी कांग्रेस ने आंबेडकर जी का खुलकर विरोध किया. उनके आग्रह के विरोध में गाँधी जी ने अनशन किया और यह सुनिश्चित किया की आंबेडकर जी उन्हें शरण आये. यह समझौता ‘पूना पैक्ट’ के नाम से जाना जाता हैं. व्हॉट काँग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स? (काँग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया?) इस किताब में, आंबेडकर जी ने गांधी और कांग्रेस दोनो पर अपने हमलों को तीखा कर दिया था, उन्होंने काँग्रेस पर ढोंग करने का आरोप लगाया था.
यह तो अच्छा हुआ की अंग्रेजों के पहल पर राष्ट्रीय सरकार बनी, जिसके कारण कांग्रेस को आंबेडकर जी को सरकार में रखना पड़ा, और उन्हें क़ानून मंत्री बनाना पड़ा. अकेले नेहरू की चलती, तो आंबेडकर जी कभी भी केंद्र में मंत्री नहीं बन पाते. बाद में नेहरू की कांग्रेस ने यह सुनिश्चित किया, की सन १९५२ का पहला लोकसभा का चुनाव आंबेडकर जी जीत नहीं पाए. बॉम्बे नार्थ से उन्होंने चुनाव लड़ा. लेकिन कांग्रेस ने सभी हथखण्डे अपनाकर उन्हें पराभूत किया. (काँग्रेस ने, आंबेडकर जी के ही पूर्व सहायक, नारायण सदोबा काजरोलकर को टिकट दिया. उन्हे जिताने के लिए नेहरू जी ने उस लोकसभा क्षेत्र में दो बार सभाएं की. आंबेडकर जी १४,००० मतों से हार गए. इन्ही काजरोलकर को काँग्रेस ने आंबेडकर जी के विरोध में दलित नेता बनाने का भरपूर प्रयास किया. १९७० में काजरोलकर को ‘पद्म भूषण’ का सम्मान दिया गया. आंबेडकर जी को काँग्रेस ने उपेक्षित ही रखा. बाद में जब १९९० में भाजपा के समर्थन से वी पी सिंह की सरकार बनी, तो आंबेडकर जी को ‘भारतरत्न’ यह सम्मान, मरणोंपरांत दिया गया !) फिर १९५४ में महाराष्ट्र के भंडारा में आंबेडकर जी ने उपचुनाव लड़ा. यहां उनके अनुयाइयों की संख्या बहुत ज्यादा थी. किन्तु यहाँ भी कांग्रेस ने उनको जितने नहीं दिया. अंत में अन्य दलों की मदद से वे बंगाल से राज्यसभा में चुने गए.
यह समझने के लिए, की कांग्रेस ने आंबेडकर जी के साथ कैसा बर्ताव किया, उन्ही के एक आलेख का अंश –
“Having led the untouchables against the Congress for full five years in the Round Table Conference and in the joint Parliamentary Committee, I could not pretend to be unaffected by the results of the elections. To me the question was: Had the untouchables gone over to the Congress. Such a thing was to me unimaginable. For, I could not believe that the untouchables-apart from a few agents of the Congress who are always tempted by the Congress gold to play the part of the traitor — could think of going over to the Congress en masse forgetting how Mr Gandhi and the Congress opposed, inch by inch up to the very last moment, every one of their demands for political safeguards.”
जीते जी आंबेडकर जी को अपमानित करने वाली कांग्रेस ने उन्हें मरने के बाद भी नहीं छोड़ा.
आंबेडकर जी धारा ३७० के पक्ष में नहीं थे. शेख अब्दुल्ला, नेहरू और कृष्णा स्वामी अय्यंगार जैसे कांग्रेस के कुछ नेताओं के आग्रह पर उन्होंने इस धारा का अस्थायी रूप से संविधान में समावेश किया था. लेकिन उनका मानना था की यह धारा जल्द से जल्द हटना चाहिए. और अभी कुछ दिन पहले कांग्रेस ने घोषणा पत्र में यह वादा किया हैं की धारा ३७० कभी नहीं हटेगी…!
संविधान सभा की बैठकों के वृत्त में यह लिखा गया हैं की डॉ. आंबेडकर जी ने देशद्रोह की धाराओं पर आग्रही भूमिका ली थी और यह धाराएं अपने कठोर रूप में रहे, यह सुनिश्चित किया था. विगत सप्ताह कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में देशद्रोह की धारा 124 A हटाने का वचन दिया..!
इसका अर्थ स्पष्ट हैं. कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर जी के विचारों की और उनके लिखे संविधान की धज्जियां उड़ाई हैं. इस लिए उन्हें डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी की प्रतिमा पर हार पहनाने का कोई हक़ नहीं हैं. सच्चे आंबेडकर जी के अनुयायी हैं, तो इन कोंग्रेसियों को रोकिये..!
- प्रशांत पोळ